पंजाब के एक छोटे से शहर- अमृतसर में, जलियांवाला बाग है। आज से 104 साल पहले, एक बच्चा, जलियांवाला बाग में चल रही गोलियों की आवाज सुनकर, कहता है- अब्बा उठो, चलो पटाखे फूट रहे हैं, तमाशा शुरू हो गया है।'' उस वक्त उसे मालूम नहीं था कि यह कोई नाटक नहीं, नरसंहार है। 10 मार्च, 1919 को, ब्रिटिश सरकार, रोलेट एक्ट लेकर आई। इस एक्ट के अनुसार, सरकार, किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के, कैद कर सकती थी। उसे सजा दे सकती थे। इसके खिलाफ विरोध के लिए, सैकड़ों भारतीय, जलियांवाला बाग में इकट्ठा थे। कई महिलाएं और पुरुष तो थे ही, लेकिन बैसाखी का दिन था, और यह जगह, गोल्डन टैंपल के बहुत करीब है, इसलिए बच्चे भी मौजूद थे।
इस बाग, के चारों ओर, ऊंची दीवारें थीं। एंट्री और एग्जिट का सिर्फ 1 रास्ता था, और वो भी, एक छोटी सी तंग गली। तभी, उस गली से, Brigadier-General Reginald Dyer, अपने 50 सैनिकों के साथ आता है। और बिना किसी चेतावनी के, निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दे देता है। गोलियां चलीं, और लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। बाग के मैदान में एक कुआं था, बचने के लिए कई लोग उसमें कूद गए। करीब 10 मिनट तक फायरिंग हुई, जब तक गोलियां खत्म नहीं हुईं। लगभग 1,650 राउंड गोलियां चलीं थीं। अगिनत लाशें खून से लथपथ इधर-उधर बिखरी थीं। सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए थे। कई घरों के चिराग बुझ गए, कितनी ही महिलाओं की मांग सूनी हो गई और सैकड़ों घरों में मातम पसर गया था।
इस काले दिन के 21 साल बाद, 1940 में, सरदार ऊधम सिंह ने, जनरल डायर को लंदन में गोली मारकर, बदला लिया था। सालों बीत गए, लेकिन आज भी उन दीवारों पर लगी गोलियों के निशान, देखे जा सकते हैं। शहीदों की याद में स्मारक बन चुका है। म्यूजियम हैं। और वो कुआं, जिसमें सैकड़ों लोग अपनी जान बचाने के लिए कूद गए, आज भी लोगों की चीख पुकार, वहां महसूस की जा सकती है। हालांकि साल 2019 में ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर- थेरेसा ने इस हत्याकांड को ब्रिटेन के इतिहास पर शर्मनाक धब्बा बताया था। आज का दिन, अमृतसर ही नहीं, बल्कि भारत के लिए भी ऐसा खूनी दिन था, जब सूरज तो जरूर चमका, लेकिन लोगों के लिए उम्मीद और दया की किरणों के बिना। यह दिन, भारत के इतिहास में एक दुखद अध्याय है। द रेवोल्यूशन-देशभक्त हिंदुस्तानी जलियांवाला बाग के शहीदों को, भारतीय को विनम्र श्रद्धांजलि देता है।